शंख मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं! दक्षिणावर्ती एवं वामावर्ती, तीसरे प्रकार का भी शंख देखा जाता है! जिसे मध्यावर्ती या गणेश शंख कहा जाता है। दक्षिणावर्ती शंख पुण्य योग से या कहे तो बड़े कठिनता से प्राप्त होता है। जिस घर में दक्षिणावर्ती शंख रहता है, वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है और इसका प्रयोग विशेषत: अर्घ्य आदि देने के लिए किया जाता है।
दक्षिणावर्ती शंख का पेट दाहिनी ओर खुला होता हैं और वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है।
शंख की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन के समय हुई थी।
भगवान शिव को अतिरिक्त अन्य सभी देवताओं पर शंख से जल अर्पित किया जा सकता है। भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक दैत्य का वध किया था, अत: शंख का जल शिव जी के निम्मित निषेध बताया गया है।
शंख से मुख्यतः वास्तुदोष दूर होता हैं, इससे अतिरिक्त आरोग्य, वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है। इसके अतिरिक्त शंख कई चमत्कारिक लाभ के लिए भी प्रसिद्ध है।
कौड़ी जल में पाये जाने वाले एक प्रकार जीव का खोल या अस्थि कोश मात्र है। प्राचीन काल में कौड़ियों का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाता था, आज भी धन की देवी लक्ष्मी का वास कौड़ी में हैं। कौड़ियों का प्रयोग विवाह, श्रृंगार, खेल इत्यादि में भी किया जाता हैं, परन्तु प्राचीन काल में! मुखतः देवी लक्ष्मी का वास होने के कारण कौड़ियों का उपयोग धन के रूप में किया जाता था।
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